गुरुजन

गुरु-शिष्य एक ऐसा रिश्ता है जिसमें एक अधिक अनुभवी या अधिक ज्ञानी व्यक्ति, कम अनुभवी या कम ज्ञानी व्यक्ति का मार्गदर्शन करने में मदद करता है। गुरु, मार्गदर्शन प्राप्त करने वाले व्यक्ति से उम्र में बड़ा या छोटा हो सकता है, लेकिन उसके पास विशेषज्ञता का एक निश्चित क्षेत्र होना चाहिए। यह व्यापक अनुभव वाले व्यक्ति और सीखने के इच्छुक व्यक्ति के बीच सीखने और विकास की साझेदारी है। उपाध्याय का अनुभव और संबंध संरचना “संरक्षक और मार्गदर्शकों के बीच के परामर्श संबंधों में होने वाले मनो-सामाजिक समर्थन, करियर मार्गदर्शन, रोल मॉडलिंग और संचार की मात्रा” को प्रभावित करती है।
मार्गदर्शन ज्ञान, सामाजिक पूंजी और मनो-सामाजिक समर्थन के अनौपचारिक हस्तांतरण की एक प्रक्रिया है जिसे प्राप्तकर्ता कार्य, करियर या व्यावसायिक विकास के लिए प्रासंगिक मानता है; मार्गदर्शन में अनौपचारिक संवाद शामिल होता है, आमतौर पर आमने-सामने और एक लंबी अवधि के दौरान, एक ऐसे व्यक्ति के बीच जिसके बारे में माना जाता है कि उसके पास अधिक प्रासंगिक ज्ञान, बुद्धि या अनुभव है (मार्गदर्शक) और एक ऐसे व्यक्ति के बीच जिसके बारे में माना जाता है कि उसके पास कम ज्ञान, बुद्धि या अनुभव है (शिष्य)।
यूरोप में मार्गदर्शन प्राचीन काल से ही प्रचलित है, कम से कम यूरोप में ग्रीस में और भारत में वैदिक काल से। भारत में हम उन्हें पुरुष/महिला के लिए ‘गुरु’ और ‘गुरवी’ कहते हैं।

अपने गुरु को जानें

  • पण्डित संजय रथ - संजय रथ उड़ीसा के पुरी के बीरा बलभद्रपुर सासन गांव के ज्योतिषियों के एक पारंपरिक परिवार से हैं, जिनका वंश श्री अच्युत दास (श्री अच्युतानंद) से जुड़ा है। संजय रथ ने अपने चाचा, स्वर्गीय पंडित काशीनाथ रथ से पढ़ाई की। उनके दादा, स्वर्गीय पंडित जगन्नाथ रथ, उड़ीसा के ज्योतिष रत्न थे और उन्होंने ज्योतिष पर कई किताबें लिखीं। उन्होंने बहुत कम उम्र में अपनी पढ़ाई शुरू की, और ज्योतिष की वह गहराई हासिल की जो केवल उन्हीं लोगों में पाई जाती है जिन्होंने परंपरा के प्राचीन पारंपरिक तरीके से प्रशिक्षण लिया है। बाद में उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया और कुछ समय तक भारत सरकार के साथ काम किया। ज्योतिष को पूरी तरह से समर्पित होने के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी ।

अपने सहायक शिक्षक को जानें

रितु खुराना

पृष्ठभूमि

इन्द्रप्रस्थ का उल्लेख प्राचीन भारतीय साहित्य में कुरु राज्य के नगर के रूप में मिलता है। यह पाण्डवों द्वारा शासित राज्य की राजधानी था। आधुनिक ऐतिहासिक शोध इसके स्थान को वर्तमान नई दिल्ली क्षेत्र में मानते हैं, विशेषकर पुराना किला (पुराण क़िला) के आसपास। इस नगर को खाण्डवप्रस्थ कहा जाता था, जो यमुना नदी के तट पर स्थित एक वनप्रदेश था जिसे भगवान कृष्ण और अर्जुन ने नगर बसाने हेतु साफ़ कराया था।
रितु खुराना इसी नगर से सम्बंध रखती हैं। उनके पुरखे सियालकोट, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) से एक हज़ार नौ सौ सैंतालीस(1947) के विभाजन के दौरान यहाँ आकर बसे। वह एक संयुक्त परिवार में पली-बढ़ीं जहाँ विभिन्न धर्मों का समागम था। उनके पितृकुल सिद्ध गौरखनाथ पंत संप्रदाय के,अनुयायी थे, जबकि मातृकुल सिख धर्म का पालन करता था। वे प्रतिदिन अपने समुदाय के गुरुद्वारे से जुड़े विभिन्न कार्यों में भाग लेते थे। रितु ने ईसाई धर्म को भी समझा क्योंकि उन्होंने अपनी शिक्षा शहर के एक प्रतिष्ठित कैथोलिक विद्यालय में प्राप्त की। पंजाबी, अंग्रेज़ी और हिन्दी उनके परिवार में दैनिक बातचीत की भाषाएँ थीं। उनका बचपन गुरु नानक, कबीर और विभाजन के समय सियालकोटा से नई दिल्ली तक की यात्रा जैसे प्रेरणादायक प्रसंगों से समृद्ध था। अपने दादा से उन्होंने जीवन का मूल सन्देश सीखा—“तुम सब कुछ खो सकते हो, पर कोई तुम्हारी शिक्षा नहीं चुरा सकता।”
रितु बचपन से ही अत्यंत सक्रिय थीं। उन्हें नृत्य, अभिनय और सृजनात्मक कला-कर्म बहुत प्रिय था।

ज्योतिष यात्रा

वह अपने परिवार की पहली पीढ़ी हैं जिन्होंने रहस्यविद्याओं के अध्ययन में कदम रखा और ज्योतिष–वास्तु सीखने की इच्छा रखी। रीति को बचपन से ही वैदिक विषयों में गहन रुचि थी। किशोरावस्था में हस्त-रेखा पढ़ना उनकी इस यात्रा का पहला चरण था। उन्होंने ‘कैरो’ और ‘लिंडा गुडमैन’ की Sun Signs से हस्तरेखा वाचन सीखा, यद्यपि कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया। वह सदैव अत्यंत अंतर्ज्ञानी रही हैं।
चूँकि वह बचपन से ही सृजनात्मक थीं, उनकी यही रचनात्मकता और विविध रुचियाँ उनके जीवन और अध्ययन की दिशा निर्धारण करती रहीं। उनकी वैदिक ज्ञान  यात्रा 2008 में प्रारम्भ हुई जब उन्होंने रेइकी सीखी और  भारतीय ज्योतिष सेवा परिषद (Indian Council of Astrology Services )से जुड़ीं। तब से उन्हें वास्तु और ज्योतिष के विभिन्न आयाम सीखने का अवसर प्राप्त हुआ।

वैदिक विषयों में प्रवेश करने से पहले, वह एक योग्य शिक्षिका थीं और दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री तथा अन्नामलाई विश्वविद्यालय से शिक्षा में स्नातक (B.Ed.) की उपाधि रखती हैं। उनके पास दो दशकों से अधिक का शिक्षण अनुभव था, और भारतीय तथा विदेशी छात्रों के साथ प्रशिक्षण (ELT) कौशल का सफलतापूर्वक आनंद लिया। बाद में उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड और वीवा जैसे विभिन्न प्रकाशन गृहों के लिए संसाधन-व्यक्ति के रूप में कार्य किया। 2024 में, मुझे वास्तु शास्त्र में दर्शनशास्त्र के डॉक्टर (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त हुई।

रितु 2015 में पारम्परा का हिस्सा बनीं और गुरु पं. संजय राठ तथा श्रीमती सरबानी रथ द्वारा संचालित देवगुरु बृहस्पति केन्द्र से पराशर ज्योतिष कोर्स (PJC) पूर्ण किया। गुरु के आशीर्वाद और सरबानी रथ जी के मार्गदर्शन से उन्होंने ‘द ज्योतिष डाइजेस्ट’ पत्रिका के लिए अनेक लेख लिखे तथा SJC Conference 2021 और 2022 में वक्ता एवं आयोजक के रूप में सहभागिता की। उन्होंने आगे भी अध्ययन जारी रखा और निम्न पाठ्यक्रमों में हिस्सा लिया—जैमिनी स्कॉलर प्रोग्राम, मंत्र शास्त्र और शिव महापुराण (पं. संजय रथ) यह सब उनके परिवार के सहयोग के बिना सम्भव नहीं था। वह सदैव अपने बच्चों को ज्ञान, मूल्य और सद्गुण प्रदान करने का प्रयास करती रही हैं। उन्हें एक पुत्री और एक पुत्र का आशीर्वाद प्राप्त है।
उनका उद्देश्य ज्योतिष और वास्तु को प्रोत्साहित करना तथा इसे विश्व के समक्ष एक शक्तिशाली वैदिक ज्ञान-तंत्र के रूप में प्रस्तुत करना है, जो ऋषियों द्वारा दिया गया है—न कि जैसा आज के युग में इसे मिथक के रूप में दिखाया जाता है।

संजय शर्मा
पृष्ठभूमि

संजय शर्मा मूलतः पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद से संबंध रखते हैं, जो गंगा–यमुना के दोआब क्षेत्र में, यमुना नदी के समीप स्थित है। उनका जन्म बैंगलोर में हुआ तथा प्रारंभिक बाल्यकाल नैनीताल में व्यतीत हुआ। इसके पश्चात उनकी शिक्षा सहारनपुर एवं दिल्ली में सम्पन्न हुई।

संजय का विस्तृत व्यावसायिक जीवन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से आरंभ होकर अनेक प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक विस्तृत रहा है। वे एक प्रवीण अर्थमितिशास्त्री (Econometrician) एवं डेटा वैज्ञानिक हैं तथा हाल ही में उन्होंने एक वैश्विक बहुराष्ट्रीय संस्था में नेतृत्वकारी पद से सेवानिवृत्ति ग्रहण की है।

उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट वातावरण में दीर्घकालीन अनुभव के कारण वे हिंदी एवं अंग्रेज़ी—दोनों भाषाओं में समान रूप से पारंगत हैं।

ज्योतिष यात्रा

संजय का झुकाव आध्यात्मिक विद्या से संबंधित विषयों की ओर प्रारंभिक आयु से ही रहा है। उन्होंने W.G. Benham तथा अन्य विद्वानों द्वारा प्रतिपादित पाश्चात्य हस्तरेखा शास्त्र का अध्ययन किया, किंतु उसकी व्यक्तिनिष्ठ प्रकृति को देखते हुए वे वैदिक ज्योतिष की ओर अग्रसर हुए। उन्होंने अपने विस्तृत परिवार के वरिष्ठ सदस्यों से प्रारंभिक ज्योतिष ज्ञान अर्जित किया और बाद में बद्री धाम के पंडित श्री नंद वशिष्ठ का आशीर्वाद प्राप्त किया।
व्यावसायिक दायित्वों एवं शिक्षा के कारण कुछ समय तक ज्योतिष अध्ययन अवरुद्ध रहा। वर्ष 2015 में उन्होंने पुनः सुसंगठित अध्ययन प्रारंभ किया और पंडित संजय रथ के मार्गदर्शन में श्री अच्युतानंद दास की परंपरा से औपचारिक रूप से जुड़े।
इसके उपरांत संजय ने पराशर ज्योतिष कोर्स (PJC) तथा जैमिनी स्कॉलर प्रोग्राम (JSP) का सफलतापूर्वक समापन किया है। वर्तमान में औपचारिक करियर पूर्ण होने और विद्वत् अध्ययन समाप्त करने के बाद वे पूर्ण समय वैदिक ज्योतिष के अध्ययन, साधना, अभ्यास तथा शिक्षण में संलग्न हैं, और परंपरा की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए इस वेदांग के संरक्षण एवं प्रसार हेतु प्रतिबद्ध हैं।

मनोज कुमार गुप्त

पृष्ठभूमि

मनोज मूलतः पश्चिमी उत्तर प्रदेश के धामपुर जनपद से संबंध रखते हैं, जो रामगंगा नदी के समीप ( हनुमानजी के कोटद्वार में सिद्धबली मंदिर से निकटवर्ती ) स्थित है। उनके पिताजी १९५९ में दिल्ली यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के रूप में नियुक्त हुए और दिल्ली में ही बस गए । मनोज का जन्म दिल्ली में हुआ तथा उनकी स्कूली  शिक्षा दिल्ली में सम्पन्न हुई।

तदनन्तर उन्होंने बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग में स्नातक  और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर शिक्षा ग्रहण करने के बाद भारत सरकार में सेवाएं प्रदान की । तदुपरांत  सेवा निवृत्ति के पश्चात् वे  अपना संपूर्ण समय ज्योतिष के अध्ययन में व्यतीत कर रहे हैं ।

उनकी शैक्षिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अनुरूप वे हिंदी , संस्कृत एवं अंग्रेज़ी भाषाओं में पारंगत हैं।

ज्योतिष यात्रा

मनोज की कॉलेज के दिनों से ही ज्योतिष व सम्बंधित गूढ़ विषयों में रूचि थी । उस रूचि के अनुसार नब्बे के दशक में उन्होंने  गुजरात विद्यापीठ ( अहमदाबाद )  के पुस्तकालय में उपलब्ध ज्योतिष , भारतीय व पाश्चात्य दर्शन , और धार्मिक विषयों पर अनेकानेक पुस्तकों एवं ग्रंथों आदि का विस्तृत अध्ययन किया जिनमे विवेकानंद साहित्य संकलन  , औरोबिन्दो साहित्य  संकलन इत्यादि भी शामिल थे । उसी समय उन्होंने ज्योतिष की मानक पुस्तकों जैसे जातकपारिजात  , मानसागरी , बृहत् जातक , सारावली आदि का भी अध्ययन किया किन्तु पुस्तक सामग्री से किसी संतोषजनक निष्कर्ष पर पहुंचना बहुत कठिन प्रतीत हुआ, क्योंकि पुस्तकों में श्लोकों के अर्थ तो दिए गए थे पर उदाहरणों और व्याख्या  का अभाव  था ।  तब यह अनुभव हुआ की किसी पारम्परिक ज्योतिष गुरु के निर्देश में अध्ययन किये बिना ज्योतिष को समझना बहुत मुश्किल है । वैसे भी  वर्ष  २००० के बाद पारिवारिक व व्यावसायिक दायित्वों  के कारण  गूढ़ विषयों  के अध्ययन में अत्यधिक व्यवधान उत्पन्न हुआ  और पढाई लगभग छूट गयी ।

वर्ष २०१३  में, किंचित  दैवी कृपा से उनका संपर्क ज्योतिष गुरु पंडित संजय रथ से हुआ जो श्री अच्युतानंद दास की परंपरा से सम्बद्ध  थे । वे  पंडित संजय रथ से औपचारिक रूप से जुड़े और उन्होंने पंडित संजय रथ के मार्गदर्शन में पुनः सुसंगठित अध्ययन प्रारंभ किया ।

वर्ष २०१३  में पराशर  ज्योतिष कोर्स (PJC) में प्रवेश लिया और वर्ष २०१६ में कोर्स पूरा किया । उसके बाद वर्ष २०१७ में जैमिनी सूत्र प्रोग्राम(JSP) में प्रवेश लिया , और कोवीड इत्यादि व्यवधानों के चलते कुछ विलम्ब के बाद वर्ष २०२५ में जैमिनी कोर्स भी सफलतापूर्वक पूरा  किया । इसी मध्य उन्होनें शिव महापुराण भाग १ (२०१६) और भाग २ (२०२४) के कोर्स में भी भाग लिया । इसके अतिरिक्त वे  मंत्र शास्त्र १, मंत्र शास्त्र २ व मंत्र शास्त्र ३ के भी प्रतिभागी थे । इस १० वर्ष से अधिक समय तक ज्योतिष  के विस्तृत अध्ययन ने उन्हें  न केवल मूल सिद्धांतों और अवधारणाओं पर मजबूत पकड़ दी है, बल्कि इस गूढ़ विषय की एक सहज समझ भी प्रदान की है।

वर्तमान में, विद्वत् अध्ययन समाप्त करने के बाद वे, पूरा समय  वैदिक ज्योतिष के अध्ययन तथा अभ्यास में संलिप्त हैं, और परंपरा की शिक्षाओं और इस वेदांग के संरक्षण एवं प्रसार हेतु शिक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं।

सतीश वर्मा

सतीश वर्मा एक समर्पित ज्योतिष छात्र हैं, वे प्रसिद्ध वैदिक ज्योतिष आचार्य श्री संजय रथ  जी के शिष्य हैं और उनके मार्गदर्शन में उन्होंने पाराशरी ज्योतिष के गूढ़ सिद्धांतों का गहन अध्ययन किया है।

अकादमिक रूप से वह विधि स्नातक है और उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार में सेवा भी की है । गुरुजी द्वारा पढ़ाए गए सभी कोर्स का उन्होंने अध्ययन किया है यथा पी जे सी , मसपी 1,2 , और 3 , बी जे सी 1 , जे एस पी और शिव महापुराण ।

उनका विश्वास है कि ज्योतिष केवल भविष्यवाणी का साधन नहीं, बल्कि आत्म-जागरण और कर्म की समझ का विज्ञान है। सतीश चंद्र वर्मा ग्रहों और भावों के माध्यम से जीवन के गहरे अर्थों को समझाने में निपुण हैं। उनकी शिक्षण शैली पारंपरिक ज्योतिष ज्ञान को आधुनिक जीवन से जोड़ने वाली है, जिससे विद्यार्थी और साधक दोनों लाभान्वित होते हैं।

उनका उद्देश्य पाराशर परंपरा की इस दिव्य विद्या को शुद्ध रूप में संरक्षित रखना और भावी पीढ़ियों तक पहुँचाना है, ताकि ज्योतिष केवल एक शास्त्र नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना के रूप में समाज में पुनः प्रतिष्ठित हो सके।