भाव

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भाव- द हाउस( घर)

भाव

वैदिक ज्योतिष में, जन्म कुंडली भाव चक्र (संस्कृत: चक्र, ‘पहिया’) है। भाव चक्र जीवन का संपूर्ण 360° चक्र है, जो भावों में विभाजित है, और चक्र में प्रभावों को क्रियान्वित करने के हमारे तरीके का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक भाव के साथ कारक (संस्कृत: कारक, ‘संकेतक’) ग्रह सम्बद्ध होते हैं, जो किसी विशेष भाव की व्याख्या को परिवर्तित कर सकते हैं।

 

 

  गृह       नाम                  कारक अर्थ

 

1 लग्न              सूर्य बाह्य व्यक्तित्व, शारीरिक बनावट,

स्वास्थ्य/कल्याण, बाल, रूप-रंग, स्वाद

 

2  धन बृहस्पति बुध, शुक्र, सूर्य, चंद्रमा  धन, पारिवारिक संबंध, खान-पान, वाणी, नेत्र, मृत्यु

 

3 सहज              मंगल प्राकृतिक अवस्था, सहज स्वभाव, साहस, वीरता,

भाई-बहन पौरुष, छोटे

 

4

 

 सुख          चंद्रमा आंतरिक जीवन, भावनाएँ, घर, संपत्ति, शिक्षा, माता,   मित्र

 

5 पुत्र          बृहस्पति रचनात्मकता, संतान, आध्यात्मिक अभ्यास, पुण्य
6 अरि         मंगल, शनि तीव्र बीमारी, चोट, खुले शत्रु, मुकदमेबाजी, दैनिक कार्य, सेवा

 

 

7   युवती       शुक्र, बृहस्पति व्यावसायिक और व्यक्तिगत संबंध, विवाह,

जीवनसाथी, युद्ध, लड़ाई-झगड़ा

 

8 रंध्र            शनि आयु, शारीरिक मृत्यु, दीर्घकालिक बीमारी, गहरी और

प्राचीनपरंपराएँ, परिवर्तन

 

9 धर्म           बृहस्पति, सूर्य भाग्य, सौभाग्य, अध्यात्म, धर्म, गुरु, पिता,

स्पर्श

 

10  कर्म    बुध, बृहस्पति, सूर्य, शनि स्वप्न पूर्ति, घुटने, कर्म, करियर, आकाश और

संगठन, दृष्टि

 

11 लाभ           बृहस्पति   लाभ, कार्य से लाभ, धन कमाने की क्षमता, सामाजिक                                                                                                संदर्भ, गुप्त मित्र, श्रवण

 

 

12  व्यय             शनि हानि, अंतर्ज्ञान, कारावास, विदेश यात्रा, मोक्ष

गुप्त शत्रु, निद्रा, गंध

 

 

 

स्लाइड प्रस्तुतियाँ

ग्रह की भाव स्थिति के प्रभाव को समझना। भाव मध्य के सापेक्ष ग्रह के सटीक

देशांतर अंश का महत्व। 30 अंश के प्रभाव को तीस तिथियों के रूप में समझना,

 जिसमें 15 पूर्ववर्ती अंश शुक्ल पक्ष और 15 परवर्ती अंश कृष्ण पक्ष हैं।

भाव संधि अमावस्या के समान है। लग्न के सापेक्ष भाव लग्न का प्रभाव।

 

संजय रथ (उड़िया: ସଞୟ ରଥ) पुरी के ज्योतिषियों के एक पारंपरिक परिवार से आते हैं, जिसका वंश श्री अच्युत दास (अच्युतानंद) से जुड़ा है। संजय रथ ज्योतिष की नींव के रूप में बृहत पाराशर होराशास्त्र, जैमिनी उपदेश सूत्र, बृहत जातक और कल्याणवर्मा की सारावली का उपयोग करते हैं और विभिन्न अन्य ज्योतिष शास्त्रों से शिक्षा देते हैं। उनकी समग्र शिक्षा और लेखन विभिन्न विचारधाराओं में फैले हुए हैं, हालांकि उन्होंने ज्योतिष का अपना ब्रांड नहीं बनाया है।